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बिल ​एंड​ ​मेलिंडा​ ​फाउंडेशन​ ​के​ ​सीईओ​ ​मार्क​ ​सुजमैन​, ​इंसेक्टीप्रो​ ​के​ ​संस्थापक​ ​और​ ​सीईओ​ ​तलाश​ ​हुजिबर्स​ ​के​ ​साथ​, 2023 ​में​ ​केन्या​ ​के​ ​लिमुरु​ ​में​ ​एक​ ​कीट​ ​प्रजनन​ ​केंद्र​ ​का​ ​मुआयना​ ​करते​ ​हुए।​
2024 गेट्स फाउंडेशन का वार्षिक पत्र

परोपकार ​का​ ​अवसर​ ​पीढ़ी​ ​में​ ​एक​ ​बार​ ​मिलता​ ​है​

मार्क सुज़मैन
मुख्य कार्यकारी अधिकारी/चीफ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर
बिल ​एंड​ ​मेलिंडा​ ​फाउंडेशन​ ​के​ ​सीईओ​ ​मार्क​ ​सुजमैन​, ​इंसेक्टीप्रो​ ​के​ ​संस्थापक​ ​और​ ​सीईओ​ ​तलाश​ ​हुजिबर्स​ ​के​ ​साथ​, 2023 ​में​ ​केन्या​ ​के​ ​लिमुरु​ ​में​ ​एक​ ​कीट​ ​प्रजनन​ ​केंद्र​ ​का​ ​मुआयना​ ​करते​ ​हुए।​ ©​गेट्स​ ​आर्काइव​/​ब्रायन​ ​ओटीनो​
बड़ी चुनौतियां और बड़ी संभावनाएं


बड़ी चुनौतियां और बड़ी संभावनाएं

Anuja Bramhane, a postwoman, records the biometrics of a beneficiary at a camp set up by the India Post Payments Bank(IPPB) in Mumbai, Maharashtra.
©Gates Archive/Mansi Midha

कोविड-19 महामारी के बाद के वर्षों में हमने देखा है कि पिछले कई दशकों से घट रही अत्यधिक गरीबी फिर बढ़ने लगी है। इसके अलावा, जानलेवा संक्रामक बीमारी का फिर लौटना, जलवायु आपदाएं, पुराने और नए युद्ध भी हैं।

अन्याय से लड़ना बहुत मुश्किल है। कई माता-पिता बीमारी के हाथों अपने बच्चों को मरते देखने और उनका अंतिम संस्कार करने को मजबूर हैं जबकि अमीर देशों के लोगों को इन बीमारियों को लेकर कभी चिंतित नहीं होना पड़ेगा। कई महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवाती हैं जबकि कुछ बुनियादी सुविधाओं, कम लागत वाले कदम उठाकर उनका जीवन बचाया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसकी वजह उनकी नस्ल, आय या फिर उनके जन्म लेने का स्थान था। इसी धरती पर करोड़ों लोग ऐसे हैं जो $2.15 से कम की दैनिक आय पर जीवनयापन करते हैं जबकि महामारी आने के शुरुआती 24 महीनों में अरबपतियों की संपत्ति में इतनी बढ़ोतरी हुई जो पिछले 23 साल में नहीं हुई थी।

कम आय वाले देशों में लोगों की ज़रूरतें बढ़ रही हैं लेकिन उन देशों के पास इन्हें पूरा करने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। आज दुनिया की लगभग आधी आबादी ऐसे देशों में रह रही है जो विदेशी कर्ज़ चुकाने पर अधिक खर्च कर रहे हैं और हैल्थकेयर सेवाओं पर कम। अमीर देशों द्वारा अपने यहां व विदेशों में अन्य प्राथमिकताओं पर अधिक खर्च करने का असर उनके द्वारा गरीब देशों को दिए जाने वाले आधिकारिक विकास सहयोग जैसे अनुदान, और कम लागत वाली वित्तीय सहायता पर पड़ा है, जो अब काफी घट गई है। अमीर देशों से मिलने वाली इन सहायताओं से बेहद गरीब देशों को अपने लोगों की बुनियादी आवश्यकताएं पूरी करने में मदद मिलती थी।

अच्छी खबर है कि इनके समाधान हैं, मौजूदा और उभरते हुए भी, जो इन चुनौतियों के बावजूद जीवन को बेहतर बनाएंगे और बचाएंगे। इनोवेटिव या नवोन्मेषी डिजिटल टूल्स सुनिश्चित कर सकते हैं कि अधिक संख्या में महिलाओं की पहुंच आर्थिक अवसरों तक हो। गट माइक्रोबायोम जैसे नए कदम कुपोषण की समस्या के समाधान में मदद कर सकते हैं। कृषि क्षेत्र में इनोवेशन या नवाचार बेहद मुश्किल मौसम में भी उत्पादन बढ़ाने में किसानों की मदद कर सकता है।

लेकिन इन सॉल्यूशंस/समाधान को मदद चाहिए वरना ये सिर्फ असीम संभावनाओं वाली बंद परियोजनाएं बनकर रह जाएंगे। यह मदद जितनी जल्दी मिलेगी उतनी ही अधिक संख्या में हम आज लोगों की मदद कर पाएंगे और अगली पीढ़ी को बेहतर भविष्य दे पाएंगे।

इसकी शुरुआत सरकारों से होती है, जो ज़रूरतमंद लोगों तक इन समाधानों की पहुंच सुनिश्चित करने में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन सरकारों के सामने भी कई प्राथमिकताएं होती हैं जिनमें से उन्हें सबसे महत्वपूर्ण को चुनना होता है और फिर वित्तीय सीमाएं भी होती हैं। अक्सर, उभरते हुए संकट से निपटने पर जो रकम खर्च होती है उसके लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं व विकास की चुनौतियों के समाधान पर खर्च में कटौती की जाती है।

सरकारों को और बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। बहुमुखी संगठनों व निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी इस दिशा में योगदान देने की आवश्यकता है क्योंकि ये कंपनियां नवाचार और प्रगति को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा, एक अन्य क्षेत्र है जिसमें दुनिया को अधिक न्यायसंगत, स्वस्थ जगह बनाने की असीम संभावनाएं हैं, जिसे लेकर मुझे वापस चक फीनी पर आना पड़ेगा।

आज हज़ारों लोग बेहतर जीवन बिता रहे हैं क्योंकि फीनी ने कमियां देखीं और उन्हें दूर करने में मदद की। परोपकार बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है- वह भी व्यापक स्तर पर। दुनिया भर के परोपकारी व्यक्ति अन्याय को कम करने में योगदान करने के लिए नए तरीके ढूंढ रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि वे और करेंगे व अधिक संख्या में लोग उनके साथ आएंगे।

विचार से प्रभाव तक


विचार से प्रभाव तक

A mother waits for her children to receive the oral polio vaccine (nOPV2) at the Horseed internally displaced person (IDP) camp during a door-to-door polio immunization in the Kahda district, in Mogadishu, Somalia.
©Gates Archive/Ismail Taxta

यह दुनिया ऐसे नवाचार करने वालों से भरी पड़ी है जो बड़ी चुनौतियों पर नज़र रखते हुए उनका समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन एक विचार से लोगों के हाथों तक पहुंचने वाले वास्तविक समाधान बनने का सफर? यह हमेशा संभव नहीं हो पाता- लेकिन जब ऐसा संभव हुआ है तब उसमें परोपकार ने कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लोगों को शायद इसका सही अहसास भी नहीं है।

​​ज़रा​ ​इस​ ​पर​ ​ध्यान​ ​दीजिए​: ​वाइल्ड​ ​पोलियोवायरस​ ​के​ ​कारण​ ​कभी​ ​एक​ ​सप्ताह​ ​में​ 7,000 ​बच्चे​ ​लकवाग्रस्त​ ​होते​ ​थे।​ 2023 ​में​ ​इससे​ ​सिर्फ​ 12 ​बच्चे​ ​प्रभावित​ ​हुए​- ​वह​ ​भी​ ​पूरे​ ​साल​ ​में।​ ​इस​ ​प्रगति​ ​का​ ​श्रेय​ ​शानदार​ ​इनोवेटर्स​ ​को​ ​जाता​ ​है​ ​जिन्होंने​ ​महत्वपूर्ण​ ​खोज​ ​की​ ​और​ ​इसमें​ ​ज़मीनी​ ​स्तर​ ​पर​ ​काम​ ​कर​ ​रहे​ ​उन​ ​कार्यकर्ताओं​ ​का​ ​भी​ ​बहुत​ ​बड़ा​ ​योगदान​ ​है​ ​जिन्होंने​ ​सुनिश्चित​ ​किया​ ​कि​ ​ये​ ​समाधान​ ​बच्चों​ ​तक​ ​पहुंचे​, ​दुनिया​ ​के​ ​सुदूर​ ​क्षेत्रों​ ​में​ ​भी।​ ​यह​ ​सब​ ​कुछ​ ​परोपकार​ ​की​ ​वजह​ ​से​ ​संभव​ ​हो​ ​पाया।​ ​रोटरी​ ​इंटरनैशनल​, ​हमारा​ ​फाउंडेशन​ ​और​ ​अन्य​ ​संगठन​ ​एक​ ​ऐसा​ ​भविष्य​ ​बनाने​ ​के​ ​लिए​ ​प्रतिबद्ध​ ​हैं​ ​जहां​ ​पोलियो​ ​बीते​ ​ज़माने​ ​की​ ​बात​ ​हो।​

यह सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे पिछले कुछ दशकों में सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों ने संक्रामक बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में अतुलनीय प्रगति की है। गावी, वैक्सीन अलायंस ने 1 अरब से भी अधिक बच्चों के टीकाकरण में मदद की है। द ग्लोबल फंड ने एचआईवी, टीबी और मलेरिया से 5.9 करोड़ लोगों की जान बचाई है। द कार्टर सेंटर और उनके सहयोगी दुर्बलता लाने वाले परजीवी संक्रमण गिनी वर्म बीमारी को जड़ से दूर करने की कगार पर हैं। ऐसा होने पर यह पृथ्वी से समाप्त होने वाली मानवीय इतिहास की दूसरी बीमारी बन जाएगी।

​​इन​ ​उपलब्धियों​ ​में​ ​कुछ​ ​बातें​ ​समान​ ​हैं।​ ​ये​ ​हज़ारों​ ​लोगों​ ​की​ ​मेहनत​ ​का​ ​परिणाम​ ​हैं​ ​और​ ​यह​ ​सभी​ ​कुछ​ ​संभव​ ​हुआ​ ​है​ ​परोपकारी​ ​लोगों​ ​के​ ​दान​ ​से​ ​संभव​ ​हुआ ​​है​​।​ ​इसमें​ ​धन​ ​की​ ​उपलब्धता​ ​भी​ ​बड़ी​ ​बात​ ​है​ ​लेकिन​ ​परोपकारी​ ​व्यक्ति​ ​अपने​ ​धन​ ​का​ ​उपयोग​ ​कैसे​ ​करते​ ​हैं​, ​किसके​ ​साथ​ ​सहयोग​ ​करते​ ​हैं​, ​वह​ ​भी​ ​बहुत​ ​महत्वपूर्ण​ ​होता​ ​है।​

हमारे फाउंडेशन के लिए, इसका मतलब है ​कि बाज़ार की विफलता- यानी ऐसे क्षेत्र जो सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के कदम रखने के लिए बहुत आकर्षक नहीं हों, वाले क्षेत्रों उनकी पहचान करना। ऐसे में अगर परोपकारी व्यक्ति कदम नहीं उठाएं तो इन मामलों में प्रगति होने की संभावना नहीं थी। परोपकारी व्यक्तियों द्वारा कदम उठाने का मतलब होता है अन्य लोगों को कदम उठाने के लिए प्रेरित करना जिससे हम सभी मिलकर जीवनरक्षक इनोवेशंस का स्तर बढ़ा सकें और समस्याओं का समाधान ढूंढ रहे लोगों को ऐसे टूल्स उपलब्ध करा सकें जो उन्हें इस दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद करें।

परोपकारिता का यह सबसे उत्साहजनक हिस्सा है: बदलाव के अनुसार तुरंत ढलने का लचीलापन और ऐसे जोखिम लेने की हिम्मत जो कोई और अन्य नहीं लेगा। इन्हीं वजहों से यह प्रगति को गति दे पाती है।

हम चीज़ों को आगे बढ़ाते हैं लेकिन हम अकेले ऐसा नहीं करते हैं। हम अपना सभी काम देशों व समुदायों के साथ करीब से मिलकर करते हैं जिससे वे उनके द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ सकें ना कि इसके विपरीत। आखिरकार, परोपकारिता में जोखिम लेने की संभावना होती है और इससे उन कमियों की भरपाई करने में मदद मिलती है जिन पर आमतौर पर ध्यान नहीं दिया जाता या उनके लिए पर्याप्त मात्रा में रकम उपलब्ध नहीं कराई जाती। परोपकारिता तभी बदलाव लाती है जब यह सरकारों, निजी क्षेत्र और स्थानीय विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करती है।

New client, Afolabi Tawakalitu, accesses mDoc’s website after signing up for services at the Balogun Market in Lagos, Nigeria, on September 14, 2023.
©Gates Archive/Nyancho NwaNri
न्याय व निष्पक्षता के लिए काम करना: परोपकारिता की अनूठी भूमिका


न्याय व निष्पक्षता के लिए काम करना: परोपकारिता की अनूठी भूमिका

Mukani Moyo, a post-doctoral scientist in food chemistry at the International Potato Center, extracts Vitamin C from an orange-fleshed sweet potato sample at the International Livestock Research Institute in Nairobi, Kenya.
©Gates Archive/Brian Otieno

मैं जहां भी जाता हूं, मुझसे पूछा जाता है कि गेट्स फाउंडेशन दो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों- जलवायु परिवर्तन और आर्टिफिशियल इंटेलीजैंस को लेकर क्या कर रही है। इन दोनों विषयों को लेकर हमारी फाउंडेशन का दृष्टिकोण दर्शाता है कि हम परोपकारिता की भूमिका और विशेषतौर पर अपनी भूमिका के बारे में क्या सोचते हैं।

पहले, जलवायु परिवर्तन। जलवायु परिवर्तन से जुड़े खर्च का अधिकतर हिस्सा प्रभाव को कम करने पर होता है जैसे कार्बन उत्सर्जन घटाने पर। यह हमारे ग्रह के भविष्य के लिए बहुत ज़रूरी है। लेकिन उन प्रभावों का क्या जो समुदायों को अभी नुकसान पहुंचा रहे हैं?

वास्तविकता यह है कि इस मौजूदा संकट में जिन लोगों ने सबसे कम योगदान किया है, जैसे उप सहारा अफ्रीका के छोटे किसान, वे इसके सबसे गंभीर परिणामों से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद वैश्विक जलवायु वित्त का सिर्फ दसवां हिस्सा ही जलवायु की स्थिति सुधारने से जुड़े कार्यों पर खर्च किया जाता है। इस रकम का भी बहुत छोटा सा हिस्सा ही ऐसी पहलों पर खर्च किया जाता है जिनसे गरीबों को लाभ मिलता है।

इसलिए, सरकारों व विश्व के सबसे बड़े वैश्विक कृषि शोध संगठन सीजीआईएआर जैसे अंतरराष्ट्रीय समूहों के साथ काम करते हुए गेट्स फाउंडेशन ऐसे सॉल्यूशंस या समाधानों के शोध एवं विकास और डिलीवरी में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है जो किसानों के समक्ष मौजूद विकल्पों को बढ़ाने में मदद करें। संभव है कि बीमारियों के प्रति अच्छी प्रतिरोधक क्षमता वाले चूज़े और सूखा वहन करने की क्षमता वाले कसावा के स्ट्रेन जैसे इनोवेशंस या नवाचार निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित नहीं हों लेकिन इनमें इतनी संभावनाएं हैं कि ये करोड़ों परिवारों को उनकी आय बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। हम इसी तरह की बाज़ार विफलताओं का समाधान उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं।

इसके अलावा एआई है। जब भी कोई नई टेक्नोलॉजी या प्रौद्योगिकी उभरती है तो इसकी संभावना अधिक होती है कि अमीर देश उसकी ताकत का इस्तेमाल करेंगे जबकि निम्न/कम आय वाले देश इस मामले में पीछे रह जाते हैं। यही बात एआई के मामले में भी लागू होती है- इससे गरीब समुदायों को तब तक लाभ नहीं मिलेगा जब तक इसे विशिष्ट तौर पर ऐसा करने के लिए डिज़ाइन या तैयार नहीं किया जाए।

हाल में, हमने शोधकर्ताओं से ऐसे प्रस्ताव मंगाए हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलीजैंस की मदद से वैश्विक स्वास्थ्य व विकास के क्षेत्र में निष्पक्षता लाने की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं। हमें प्राप्त हुए कुल प्रस्तावों में से करीब 80 फीसदी प्रस्ताव और अनुदान के लिए चुने गए सभी प्रस्ताव निम्न/कम और मध्य आय वाले देशों के शोधकर्ताओं द्वारा भेजे गए थे।

इन प्रस्तावों में शामिल है- पाकिस्तान में युवा महिलाओं की मेडिकल रिकॉर्ड कीपिंग को बेहतर बनाने के लिए व्यापक स्तर पर भाषा मॉडल्स उपयोग करने की योजना, दक्षिण अफ्रीका में बिना किसी पूर्वाग्रह एचआईवी काउंसलिंग देना, नाइजीरिया में स्कूल जाने वाले बच्चों को वीडियो फॉर्मेट में पर्सनलाइज़्ड स्टेम (STEM) की पढ़ाई कराना, तंज़ानिया में मलेरिया से जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए स्थानीय भाषाओं में जानकारी प्रसारित करना और भी बहुत कुछ।

यह काम हमारी भागीदारी के बिना भी हो सकता था।, लेकिन परोपकारी समर्थन मिलने से ये समाधान ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है और वह भी कम समय में।

नामुमकिन को मुमकिन बनाने के कई तरीके हैं/ कई तरीकों से नामुमकिन को मुमकिन बनाना संभव


नामुमकिन को मुमकिन बनाने के कई तरीके हैं/ कई तरीकों से नामुमकिन को मुमकिन बनाना संभव

सारा मासेंगा, फाउंडेशन फॉर सिविल सोसाइटी की संचार अधिकारी, ने दार एस सलाम, तंजानिया में गिविंग ट्यूज़डे के बीच क्लीन-अप के लिए एक पेड़ लगाया। फोटो: फाउंडेशन फॉर सिविल सोसायटी द्वारा।
सारा मासेंगा, फाउंडेशन फॉर सिविल सोसाइटी की संचार अधिकारी, ने दार एस सलाम, तंजानिया में गिविंग ट्यूज़डे के बीच क्लीन-अप के लिए एक पेड़ लगाया। फोटो: फाउंडेशन फॉर सिविल सोसायटी द्वारा।

त्वरित समस्याओं के समाधान में हमारी फाउंडेशन द्वारा निभाई जा रही भूमिका पर हमें गर्व है- लेकिन यह काम करने वाले हम अकेले नहीं हैं। दुनियाभर में कई सारे परोपकारी मुनष्य विभिन्न समस्याओं के समाधान ढूंढने के लिए बिलकुल नए तरीके और अनूठी विशेषज्ञताओं का उपयोग कर रहे हैं।

15 साल पहले जब मैंने यह काम करना शुरू किया था तब परोपकारिता पारिस्थितिकी तंत्र मौजूदा समय से काफी अलग था और यह बदलाव बहुत अच्छा है। दुनियाभर के दानकर्ता कई जटिल चुनौतियों के समाधान के लिए बेहद साहसी दृष्टिकोण और अपने जीवन के अनुभवों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अफ्रीकन फिलैनथ्रॉपी फोरम, पूरे द्वीप में समावेशी, वहनीय विकास को बढ़ावा देने में अफ्रीकी दानकर्ताओं की मदद करता है। फाउंडेशंस द्वारा भारत, चीन और सिंगापुर में स्थानीय व वैश्विक समस्याओं के समाधानों पर जो काम किया जा रहा है उसे लेकर मैं बहुत उत्साहित हूं। जब अगली पीढ़ी के परोपकारी आगे आएंगे, तब वे अपने साथ नए विचार लाएंगे और अच्छी तरह जीना क्या होता है उसके उच्च मानक स्थापित करेंगे।

​​वास्तव​ ​में​, ​सिर्फ​ ​ऐसा​ ​नहीं​ ​है​ ​कि​ ​बहुत​ ​अमीर​ ​लोग​ ​ही​ ​बदलाव​ ​ला​ ​सकते​ ​हैं।​ ​छोटे​-​छोटे​ ​दान​ ​भी​ ​मिलकर​ ​बहुत​ ​प्रभावी​ ​साबित​ ​हो​ ​सकते​ ​हैं।​ ​आज​, ​दुनिया​ ​के​ ​करीब​ ​आधे​ ​देश​ ​गिविंग​ ​ट्यूज़डे​ (GivingTuesday) ​में​ ​हिस्सा​ ​लेते​ ​हैं।​ 2012 ​में​ ​शुरू​ ​किए​ ​गए​ ​इस​ ​अभियान​ ​ने​ ​अभी​ ​तक​ $13 ​बिलियन​/​अरब​ ​से​ ​भी​ ​अधिक​ ​रकम​ ​जुटाने​ ​में​ ​मदद​ ​की​ ​है।​

​इनके​ ​अलावा​, ​दुनियाभर​ ​में​ ​करोड़ों​ ​लोग​ ​ऐसे​ ​हैं​ ​जो​ ​विदेश​ ​में​ ​रहकर​ ​काम​ ​कर​ ​रहे​ ​हैं​ ​और​ ​हर​ ​महीने​ ​अपने​ ​वेतन​ ​का​ ​कुछ​ ​हिस्सा​ ​मूल​ ​देश​ ​में​ ​रह​ ​रहे​ ​​परिवार​ ​को​ ​भेजते​ ​हैं।​ ​इस​ ​रकम​ ​को​ ​विप्रेषित​ ​धन​ ​या​ ​रेमिटेंस​ ​कहा​ ​जाता​ ​है​ ​और​ ​यह​ ​रकम​ 2020 ​में​ ​बढ़कर​ $590 ​बिलियन​/​अरब​ (reached $590 billion in 2020) ​हो​ ​गई​ ​थी।​ ​यह​ ​रकम​ ​अन्य​ ​प्रकार​ ​की​ ​अंतरराष्ट्रीय​ ​मदद​ ​के​ ​सभी​ ​स्रोतों​ ​के​ ​जोड़​ ​से​ ​भी​ ​बहुत​ ​अधिक​ ​है।​

आप​ ​सोच​ ​रहे​ ​होंगे​ ​कि​ ​आर्थिक​ ​मुश्किलें​ ​आने​ ​पर​ ​लोगों​ ​द्वारा​ ​उनके​ ​गृह​ ​देशों​ ​में​ ​भेजी​ ​जा​ ​रही​ ​रकम​ ​में​ ​गिरावट​ ​आती​ ​होगी।​ ​लेकिन​ ​होता​ ​इसका​ ​विपरीत​ ​है​: ​विदेश​ ​में​ ​रहकर​ ​काम​ ​कर​ ​रहे​ ​लोग​ ​कम​ ​खर्च​ ​करते​ ​हैं​ ​जिससे​ ​वे​ ​अपने​ ​परिवार​ ​को​ ​अधिक​ ​रकम​ ​भेज​ ​सकें।​ ​कोविड​-19 ​महामारी​ ​के​ ​​दौरान​ ​विप्रेषित​ ​धन​ ​के​ ​आंकड़ों​ ​में​ 19 ​फीसदी​ (went up) ​की​ ​बढ़ोतरी​ ​दर्ज​ ​की​ ​गई​ ​थी।​

दुनिया भर में इतनी उदारता है। आज के समय में पहले के मुकाबले इतने अधिक संसाधन उपलब्ध हैं जो परोपकारी लोगों को उनकी उदारता को प्रभाव में बदलने में मदद कर सकते हैं।​इन​ ​संसाधनों​ ​में​ ​डोनर​ ​कोलैबरेटिव्स​ ​जिसे​ ​कॉलेबोरेटिव​ ​फंड्स​ ​के​ ​नाम​ ​से​ ​भी​ ​जाना​ ​जाता​ ​है​ ​से​ ​लेकर​ ​व्यापक​ ​स्तर​ ​पर​ ​दान​ ​करने​ ​के​ ​नए​ ​मॉडल्स​ ​भी​ ​शामिल​ ​हैं।​

अधिक आवश्यकता वाले क्षेत्रों में दान करना

हालांकि यह भी सच है कि दानदाताओं के पास देने के लिए भले ही $10 या $10 मिलियन हों मगर वे जानना चाहते हैं कि उनके दान प्रभाव डाल रहे हैं - और कहाँ और कैसे देना है इसके बहुत सारे विकल्पों के साथ, निर्णय कठिन लग सकता है। सौभाग्य से, वैश्विक परोपकार के क्षेत्र में दशकों के नवोन्‍मेष और सहयोग का मतलब है कि दानदाताओं को अकेले सफर तय नहीं करना पड़ेगा।

कैसे दानकर्ता अपने डॉलर्स/पैसों को सर्वाधिक ज़रूरत वाले क्षेत्र में दान कर सकते हैं- और भरोसा करें कि उसे दक्षता के साथ खर्च किया जा रहा है?

ट्रेवॉन मोलिरे (बाएं) अपनी इंटर्नशिप पर काम करते हैं एक गुरु के साथ. इस इंटर्नशिप को न्यू ऑर्लींस, लुइसियाना में यूथफोर्स नोला के माध्यम से आयोजित किया गया था।
ट्रेवॉन मोलिरे (बाएं) अपनी इंटर्नशिप पर काम करते हैं एक गुरु के साथ. इस इंटर्नशिप को न्यू ऑर्लींस, लुइसियाना में यूथफोर्स नोला के माध्यम से आयोजित किया गया था। © गेट्स आर्काइव/क्रिस्टियाना बोटिक।

अमेरिका में कम्युनिटी फाउंडेशंस एक असाधारण संसाधन है। वे स्थानीय स्तर पर जड़ों से जुड़ी होती हैं और सबसे अधिक प्रभाव वाले क्षेत्रों को लेकर दानकर्ताओं का मार्गदर्शन कर सकती हैं।

डोनर कोलैबोरेटिव्स, बड़े स्तर, अंतरराष्ट्रीय दान का एक बहुत अच्छा संसाधन है। से संगठन दानकर्ताओं को साथ लाते हैं, उन्हें विशेषज्ञता उपलब्ध कराते हैं और उनके द्वारा दान की गई रकम को प्रभावी ढंग से स्थानीय संगठनों तक पहुंचाते हैं।

डोनर कौलेबोरेटिव्स और न्याय व निष्पक्षता को लेकर उनकी सामूहिक प्रतिबद्धता

बिहार, इंडिया में लैंगिक प्रशिक्षण में भाग लेने के अनुभवों को महिलाएं साझा करती हैं।
बिहार, इंडिया में लैंगिक प्रशिक्षण में भाग लेने के अनुभवों को महिलाएं साझा करती हैं। © गेट्स आर्काइव/मांसी मिधा

कोलैबोरेटिव्स में से 70 फीसदी स्पष्ट तौर पर जेंडर व नस्लीय समानता को प्राथमिकता मानते हैं।

इनमें से कुछ विषय केंद्रित होते हैं जैसे एंड फंड, जो नज़रअंदाज़ की गई ट्रॉपिकल बीमारियों के उन्मूलन पर केंद्रित है या को-इम्पैक्ट जेंडर फंड, जो महिलाओं के नेतृत्व को सपोर्ट करता है। अन्य फंड कुछ वि​शिष्ट समुदायों की मदद करते हैं। अनाम्या, भारत में आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य व पोषण पर ध्यान देता है। ब्लू मेरिडियन पार्टनर्स, ऐसे सॉल्यूशंस का दायरा बढ़ाने पर ध्यान देता है जो अमेरिका में गरीबी में जीवनयापन कर रहे लोगों के लिए अवसर उपलब्ध कराएं और इसने अपनी स्थापना से लेकर अभी तक $4.5 बिलियन की रकम जुटाई है।

क्या छोटे संगठन बड़े दान का इस्तेमाल करने में वास्तव में सक्षम हैं?

हैबिटैट फॉर ह्यूमैनिटी ऑफ ग्रेटर लॉस एंजल्स ने फिलैंथ्रोपिस्ट मैकेंजी स्कॉट से $20 मिलियन की धनराशि प्राप्त की।
हैबिटैट फॉर ह्यूमैनिटी ऑफ ग्रेटर लॉस एंजल्स ने फिलैंथ्रोपिस्ट मैकेंजी स्कॉट से $20 मिलियन की धनराशि प्राप्त की। फोटो: मीडियान्यूज ग्रुप/लॉन्ग बीच प्रेस-टेलीग्राम के माध्यम से गेटी इमेजेस।

2020 में मैकेंज़ी स्कॉट ने गैर- सरकारी संगठनों व शैक्षिक संस्थानों को खुलकर दान दिया और इनमें से कई छोटे संगठन थे। इसे लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या इन संगठनों को जो अनुदान मिला वह इसका उपयोग कर पाने की उनकी क्षमता से अधिक था।

लेकिन सेंटर फॉर इफेक्टिव फिलैनथ्रॉपी द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि स्कॉट से अनुदान प्राप्त करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को कुछ नकारात्मक परिणाम मिले लेकिन वे लंबी अवधि की योजनाएं बना रहे थे जिससे अनुदान खर्च होने के बाद के जोखिमों को कम किया जा सके। आज के समय में, ये अनुदान दुनियाभर में करीब 2,000 प्रभावी संस्थानों को मज़बूती दे रहे हैं।

मुझे पता है कि ऐसे भी लोग हैं जो सीमित क्षमता होने के बावजूद परोपकारिता को लेकर प्रतिबद्ध हैं। लेकिन ऐसे लोग जो सक्षम हैं उनके लिए अभी परोपकारिता की शुरुआत करने के ढेर सारे लाभ हैं।

पहली बात, आपको आपके द्वारा लाया गया बदलाव वास्तव में देखने का मौका मिलेगा। आपको यह काम कर रहे लोगों के साथ परस्पर विश्वास व समझ बनाने के लिए समय भी होगा। मज़बूत साझेदारियां अपने आप में किसी पुरस्कार से कम नहीं और इनका प्रभाव भी बहुत अधिक होता है। जितनी जल्दी आप इसकी शुरुआत करेंगे, उतनी ही तेज़ी से आप इसे आगे बढ़ा सकेंगे। जल्दी शुरुआत करना तब बहुत आवश्यक होता है जब आप ऐसी समस्याओं के समाधान ढूंढने पर काम कर रहे हैं जिनमें सफलता महीनों या वर्षों में नहीं बल्कि दशकों के दौरान मापी जाती है।

​​गैर​-​लाभकारी​ ​संस्था​, ​ट्यूजडेज़​ ​फॉर​ ​ट्रैश​ ​ने​ 2022 ​में​ ​गिविंगट्यूज़डे​ ​पर​ ​कचरा​ ​संग्रह​ ​किया।​
​​गैर​-​लाभकारी​ ​संस्था​, ​ट्यूजडेज़​ ​फॉर​ ​ट्रैश​ ​ने​ 2022 ​में​ ​गिविंगट्यूज़डे​ ​पर​ ​कचरा​ ​संग्रह​ ​किया।​ ​फोटो​ : ​ट्यूजडेज़​ ​फॉर​ ​ट्रैश।​
अरबों डॉलर से क्या किया जा सकता है


अरबों डॉलर से क्या किया जा सकता है

Research scientist, Ochieng Ouko from the Kenya Agricultural and Livestock Research Organization (KALRO) holds baby chicks at the poultry research unit in Naivasha, Kenya.
फोटो: © गेट्स आर्काइव/ब्रायन ओटीनो

चक फीनी का दान करने का तरीका बहुत असाधारण था लेकिन एक बात जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया वह यह कि कैसे उन्होंने अवसरों से दूर रहने वाले लोगों को प्राथमिकता दी।

अधिकतर अमीर दानकर्ता सामाजिक बदलाव के लिए दान देने की इच्छा जताते हैं- लेकिन वास्तव में उनके द्वारा दिए जा रहे दान का बड़ा हिस्सा प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों/यूनिवर्सिटीज़ व सांस्कृतिक संस्थानों को जाता है। फीनी ने ये दोनों काम किए। उन्होंने जिस विश्वविद्यालय/यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की उसे करीब एक अरब डॉलर का दान दिया लेकिन इसके साथ ही उन्होंने मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी अरबों डॉलर दान किए।

अगर अधिक संख्या में दानकर्ता फीनी का अनुसरण करें तो कितना कुछ करना संभव है ज़रा इसकी कल्पना कीजिए। क्या हो, अगर एक बेहद प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी को $100 मिलियन दान देने के साथ ही कोई दानकर्ता $100 मिलियन दान देकर एक ऐसा सिस्टम स्थापित करे जो अमेरिका में कॉलेज जाने वाले प्रत्येक छात्र को ऑनलाइन टेक्स्टबुक्स फ्री में उपलब्ध कराए, वह भी हमेशा के लिए? अगर कोई दानकर्ता कैंसर का इलाज खोज रहे संस्थान को $20 मिलियन का दान देने के साथ ही आज भी हर मिनट एक बच्चे की जान लेने वाली बीमारी मलेरिया से जुड़े शोध के लिए भी $20 मिलियन दान करे? या जिस प्राइवेट स्कूल में उनके बच्चे पढ़ रहे हैं उसे $5 मिलियन दान देने के साथ ही उप-सहारा अफ्रीका में बेहतर शिक्षण में मदद के लिए भी $5 मिलियन दान दे?

मैं जानता हूं कि बहुत कम लोग ही अपनी पूरी संपत्ति दान देने के इच्छुक या ऐसा करने में सक्षम होंगे। लेकिन फीनी जैसी शानदार उदारता और मौजूदा बेहद अमीरों द्वारा किए जा रहे परोपकार के बीच में काफी संभावनाएं व अवसर हैं जो प्रभाव ला सकते हैं।

वैश्विक स्तर पर, दुनिया के 2,640 अरबपतियों की नेटवर्थ कम से कम $12.2 ट्रिलियन है। $1 बिलियन के दान के साथ दानकर्ता अधिक प्रभाव, कम लागत वाले हस्तक्षेप करने वाला फंड स्थापित कर सकते हैं जो अगले 6 साल के दौरान लाखों माताओं व शिशुओं की ज़िंदगी बचा सकता है। $4 बिलियन के फंड के साथ वे 50 करोड़ से अधिक छोटे किसानों को जलवायु में हो रहे बदलाव के लिए लचीला बनाने और कृषि से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक 1 गीगाटन घटाने में मदद कर सकते हैं। सिर्फ $7 बिलियन के फंड के साथ वे 30 करोड़ लोगों तक वैक्सीन्स पहुंचाकर कम से कम 70 लाख लोगों को मरने से बचा सकते हैं।

अगर धरती पर मौजूद प्रत्येक अरबपति अपनी संपत्ति का सिर्फ 0.5% दान करे तो इससे $61 बिलियन मिलेंगे- ऊपर बताए गए सभी कार्यों पर खर्च करने के बावजूद इसमें से $49 बिलियन बच जाएंगे।

यह रकम बड़ी संख्या में लोगों के लिए अवसर विकसित कर सकती बशर्ते इसे खर्च किया जाए और वह भी सही तरीके से। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में फिलैनथ्रॉपिक फाउंडेशंस के लिए हर साल उनके असेट्स का कम से कम 5% दान देना अनिवार्य होता है। व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह आंकड़ा अधिक हो सकता है- विशेष तौर पर जब हम टैक्स के फायदों की भी बात करें तो। हालांकि, यह स्थिति अधिकतर यूरोप के मुकाबले बेहतर है जहां फाउंडेशंस के लिए दान देने की कोई अनिवार्यता नहीं है।

Midwife Eva Nangalo gives a swaddle demonstration to first time mother Shakira Nankya, 23, at the Nakaseke General Hospital in Nakaseke District, Uganda.
©Gates Archive/Zahara Abdul

आज की दुनिया में ऐसी जटिल समस्याओं की कमी नहीं है जो समाधान के इंतज़ार में हैं या जिनका समाधान ढूंढने के लिए इनोवेटेर्स काम कर रहे हैं। दुनियाभर में, इनोवेटर्स ऐसी महत्वपूर्ण खोज करने के बेहद करीब है जो करोड़ों लोगों का जीवन बचाने और उसे बेहतर बनाने में सक्षम होंगी। इनमें से कुछ का फायदा तो ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाया भी जा रहा है। कुछ में सफलता हासिल करने में थोड़ा समय लगेगा लेकिन उनमें लोगों का जीवन बदलने की क्षमता है। लेकिन उदार निवेश और लगातार समर्थन के बिना महान आइडिया भी सिर्फ आइडिया ही रह जाता है।

अगर अधिक संख्या में लोग अपनी प्रतिबद्धता बढ़ाएं और सबसे अधिक ज़रूरत वाले क्षेत्रों पर अपने संसाधनों को केंद्रित करें तो ऐसे विचारों को प्रभावों में बदला जा सकता है। इसका मतलब, बड़ी संख्या में किसान अपने परिवार का बेहतर ढंग से पालन पोषण कर सकेंगे फिर चाहे मौसम कैसा भी हो, बड़ी संख्या में बच्चे ऐसी बीमारियों का शिकार नहीं होंगे जिनकी रोकथाम करना संभव है और कई औरतों के लिए प्रसव डर का नहीं बल्कि खुशी का स्रोत बन सकेगा।

साथ मिलकर हम परोपकारिता की पूरी क्षमता का फायदा उठा सकते हैं और वह भी आज जब दुनिया को इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है।

मार्क सुज़मैन
मुख्य कार्यकारी अधिकारी/चीफ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर
बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन

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